एलिसाबेट पुर्वे-जोरेन्डाल वर्ष 1973 में जब केवल छह महीने की थीं तो उन्हें पुणें की संस्था के सुपुर्द कर दिया गया। फिर जब वो ढाई साल की हुईं तो एक स्वीडिश परिवार ने उन्हें गोद ले लिया और उनकी नई जिंदगी की शुरुआत हुई। हैरत की बात यह है कि 42 साल बाद उन्होंने अपनी जन्म देने वाली मां को खोज निकाला और फिर एक भावुक मुलाकात हुई।
स्वीडन-डेनमार्क की सीमा पर हेलसिन्गबर्ग से उन्होंने फोन पर बीबीसी को बताया कि अपनी मां से उनकी मुलाकात 'किसी चमत्कार से कम नहीं थी'। एलिसाबेट ने कहा, "मेरे जन्म के समय मेरी मां 21 साल की थीं। उनकी शादी मेरे किसान पिता से तीन साल पहले हुई थी। एक दिन पिता घर आए तो बहुत गुस्से में थे। उनका किसी से झगड़ा हुआ था। उन्होंने पेस्टीसाइड पी लिया और जान दे दी।" उनकी मां अपने मां-बाप के साथ जाकर रहने लगीं, जो चाहते थे कि वह फिर से शादी कर लें और नई ज़िंदगी शुरू करें। "लेकिन एलिसाबेट की मां गर्भवती थीं और उन्हें यह बात पता भी नहीं थी।"
पुर्वे-जोरेन्डाल सितंबर, 2015 में अपनी मां को ढूंढती हुईं पुणे के इस गांव में पहुंची थीं। जब उनके परिवार को गर्भ के बारे में पता चला तो वह उन्हें पुणे की एक धर्मार्थ संस्था के अनाथालय में ले गए जहां उन्होंने सितंबर 1973 में एक बच्ची को जन्म दिया। पुर्वे कहती हैं, "मुझे बताया गया कि कुछ महीने तक वह उसी केंद्र में रहीं, मेरी देखभाल करती रहीं।" जब एलिसाबेट ढाई साल की हुईं तो उन्हें स्वीडन के एक दंपत्ति ने गोद ले लिया जिसने उन्हें एक नया घर और नई ज़िंदगी दी। "लेकिन मैं हमेशा भारत में अपनी मां के बारे में सोचा करती थी। वह कौन थीं? कैसी थीं? उन्होंने मुझे क्यों छोड़ा?
मैं जानती थी कि मुझे उन्हें ढूंढना ही होगा, क्योंकि मैं उनका ही एक हिस्सा थी। मैं अपने सभी सवालों के जवाब चाहती थी।" उन्हें गोद लेने वाले माता-पिता ने तो उनकी इस इच्छा का समर्थन किया लेकिन अन्य लोगों को यह समझ नहीं आया कि वह पुरानी बातों को क्यों याद करना चाहती हैं। उन्होंने सलाह दी, "यहां तुम्हारी अच्छी ज़िंदगी है, रहने दो उसे।" लेकिन एलिसाबेट ने 1998 से अपनी मां को ढूंढना शुरू कर दिया और डेढ़ दशक बाद, उनकी तलाश महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में आकर ख़त्म हुई।
एलिसाबेट पुर्वे-जोरेन्डाल (गोद में बाएं) उस अनाथालय में जहां वह पैदा हुई थीं। शुरुआत में उनके पास तलाश करने के लिए ज़्यादा आधार नहीं था- बस अपनी मां और नाना का नाम था जो गोद दिए जाने वाले काग़ज़ों में था। "मुझे समझ आया कि सिर्फ़ इतनी सी जानकारी के साथ कहीं भी जाना कितना मुश्किल था। आप 1।2 अरब लोगों के देश में किसी को कैसे ढूंढेंगे? यह भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा था। इसके लिए आपके पास सही संपर्क होने चाहिए, पता होना चाहिए कि कौन से बटन को दबाना है।
" 2014 में उन्होंने बेल्जियम स्थित एक स्वैच्छिक संगठन अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग (एसीटी) से संपर्क किया। पिछले साल 8 अगस्त को उन्हें एसीटी से एक ईमेल मिली जिसमें कहा गया कि उनकी मां का पता चल गया है। इस मेल में कुछ फ़ोटो भी अटैच किए गए थे। एलिसाबेट कहती हैं, "मैं अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकती। वो इंसान जिसे मैं पूरी ज़िंदगी खोजती रही, अब मैं उसकी फ़ोटो देख रही थी। यह कल्पना से परे था। यह एक चमत्कार था।" सितंबर में अपने जन्मदिन से पहले वह आधी दुनिया की दूरी तय करके उस महिला से मिलने आईं जिसने उन्हें जन्म दिया था।
पुर्वे-जोरेन्डाल ने अपना 42वां जन्मदिन उसी अनाथालय में मनाया जहां वह पैदा हुई थीं। वो बताती हैं, "।।।और अचानक मैं वहां थी। उनके घर के बाहर, उनके दरवाज़े के बाहर। एक सोशल वर्कर उनके संपर्क में थे, इसलिए वह मेरा इंतज़ार कर रही थीं। वह बैठी हुई थीं और जब मुझे देखा तो खड़ी हो गईं। मैं स्तब्ध रह गई, कुछ कह ही नहीं पाई। वह भी जैसे सकते में आ गईं।" दूसरी शादी से एलिसाबेट की मां के दो बच्चे हैं- एक बेटा और एक बेटी। उनके दूसरे पति की कुछ साल पहले मौत हो गई थी।
अब वह अपने बेटे, उसकी पत्नी और उनके बच्चों के साथ रहती हैं। उन्होंने अपनी पहली संतान के बारे में किसी को नहीं बताया था। इसलिए जब उनकी बहू और बच्चे सामने आए तो 'उन्होंने अपने आंसू पी लिए। मुझे भी ऐसा ही करना पड़ा। मुझे बताया गया था कि मैं भूल कर भी कुछ ज़ाहिर न करूँ।" एलिसाबेट को अपने सौतेले भाई से एक मौसेरी बहन के रूप मे मिलवाया गया। अब भी वह लोग सच नहीं जानते। अपनी मां के साथ बात करने के लिए एलिसाबेट ने उन्हें अपने होटल बुलाया। "टैक्सी में बैठे-बैठे हमने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और दो घंटे लंबी यात्रा में हम एक दूसरे का हाथ पकड़कर बैठी रहीं।"
पुणे के अनाथालय में आने वाले एक आदमी ने पुर्वे-जोरेन्डाल को गोद में उठा रखा है। "उन्होंने कहा कि वह मुझे छोड़ना नहीं चाहती थीं। वह मुझे अपने साथ ले जाना चाहती थीं, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था। वह नहीं जानती थीं कि मैं स्वीडन में हूं। दरअसल उन्हें कोई अंदाज़ा ही नहीं था कि मैं कहां हूं। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता था कि वह मुझसे कभी नहीं मिल पाएंगी।" एलिसाबेट कहती हैं कि उनकी शक्ल अपनी मां से इतनी मिलती है, यह देखकर वह हैरान रह गईं। "मेरे भारतीय परिवार में इसके लिए ख़ास शब्द कहा जाता है। वह कहते हैं कि मैं उसकी 'कार्बन कॉपी' हूं। हम न सिर्फ़ एक दूसरे की तरह दिखते हैं बल्कि हमारा व्यवहार भी एक जैसा है, हम एक ही तरह से बैठती हैं, एक ही तरह से हाथ घुमाती हैं।" वह कहती हैं कि अब वह अपनी मां से अलग नहीं रहना चाहतीं।
"मेरी मां पूरी ज़िंदगी यह भारी बोझ उठाती रही हैं कि किसी को बताना नहीं है। मैं उनके लिए उनके साथ रहना चाहती हूं, वह मेरी मां हैं। मैं उनके नज़दीक रहना चाहती हूं, इसलिए मैं कोशिश करूंगी कि कम से कम साल का कुछ समय भारत में रहूँ।" "वह मेरा ख़ून हैं, मेरी असली जड़ें उन्हीं के साथ हैं।"
पुर्वे-जोरेन्डाल की ज़िंदगी के शुरुआती ढाई साल पुणे के अनाथालय में बीते थे। एलिसाबेट ने दो दिन गांव में बिताए और जब जाने का समय आया तो वह ऐसा पल था जिसे वह कभी नहीं भूल सकतीं।
"आखिरी मुलाकात में, मैं उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थी। मैं रोने लगी। वह मेरे साथ ही बैठी हुई थीं और जब मेरे आंसू निकलकर मेरे गालों पर लुढ़कने लगे तो उन्होंने अपनी साड़ी के कोने से मेरे आँसू पोंछते हुए कहा- 'रो मत मेरी बच्ची'।"
source:अमर उजाला
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