एक समय था जब आम जन में आतंकी संगठनों की विचारधारा और उनके आंतक फैलाने की वजह जानने की उत्सुकता बनी रहती थी। जब धीरे-धीरे इनके बारे में सब कुछ आईने की तरह साफ होने लगा तो अब लोग उनकी आर्थिक स्थिति और उसके स्रोत पर बात करने लगे हैं।
लोगों में उनकी आर्थिक स्थिति जानने की उत्सुकता इसलिए भी बलवती होती चली गई क्योंकि उनका मानना है कि एक ओर तो दुनिया का हर मुल्क आतंक और आतंकियों का विरोध करता है तो आखिर इन्हें इतनी बड़ी मात्रा में गोला, बारूद, हथियार कहां से मिलता है और वो क्या केवल इन्हीं गोला बारुदों के सहारे जिन्दा हैं?
उनके खाने पीने, रहने और बाकी आवश्यक आवश्यकताओं का इंतजाम कैसे होता होगा? धीरे-धीरे लोगों की इस जिज्ञासा का हल भी हो रहा है। एजेंसियां कई रिपोर्ट्स के हवाले से बड़े आतंकी संगठनों की आर्थिक स्थिति और उसके स्रोत का खुलासा करने की ओर हैं।
बीते कुछ सालों में आईएसआईएस ऐसा आतंकी संगठन बन कर उभरा है जिसके पास अकूत धन संपदा है जो उसने तेल के कुओं और कई शहरों पर कब्जा कर के बनाई है लेकिन कई ऐसे संगठन भी हैं जिन्होंने आतंक को ही अपने जीने खाने का जरिया बना लिया। आगे की स्लाइड्स में पढ़े कि कौन सा आतंकी संगठन किस तरह से और कितनी कमाई करता है।
इनकी कमाई 100 मिलियन डॉलर से ज्यादा
बीते
सोमवार को अमेरिका द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों से पता चला है कि
अलकायदा के मृत सरगना ओसामा बिन लादेन के पास पास 2.9 करोड़ डॉलर की निजी
संपत्ति थी। ओसामा की निजी संपत्ति के बारे में जानकर आप इस बात का अंदाजा
लगा सकते हैं कि उसके सरगना के पास इतनी संपत्ति है तो पूरा संगठन कितनी
अकूत संपत्ति पर राज कर रहा होगा।
ओसामा बिन लादेन की मौत हो चुकी है लेकिन अल कायदा का खौफ अब भी कायम है। संगठन के नए नेता अयमान अल जवाहिरी ने भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने का आह्वान कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को भी चौकन्ना कर दिया। 11 सितंबर, 2001 में अमेरिका में ट्विन टॉवर पर किए गए हमलों के बाद इस आतंकी संगठन के नाम और काम से शायद ही कोई अंजान हो।
अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए मुताबिक, कुछ सालों पहले तक अलकायदा की कमाई लगभग 30 मिलियन डॉलर सालाना थी। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अब ये बढ़कर लगभग 100 मिलियन डॉलर हो गई है। अलकायदा की आमदनी का स्रोत भी चंदा ही बताया जाता है। ओसामा बिन लादेन और अब्दुल अज्जाम समेत कई नेताओं ने अलकायदा की स्थापना 1988 और 1989 के बीच हुई थी। संगठन को अफगानिस्तान-सोवियत युद्ध सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया गया था।
ओसामा बिन लादेन की मौत हो चुकी है लेकिन अल कायदा का खौफ अब भी कायम है। संगठन के नए नेता अयमान अल जवाहिरी ने भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने का आह्वान कर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को भी चौकन्ना कर दिया। 11 सितंबर, 2001 में अमेरिका में ट्विन टॉवर पर किए गए हमलों के बाद इस आतंकी संगठन के नाम और काम से शायद ही कोई अंजान हो।
अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए मुताबिक, कुछ सालों पहले तक अलकायदा की कमाई लगभग 30 मिलियन डॉलर सालाना थी। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक अब ये बढ़कर लगभग 100 मिलियन डॉलर हो गई है। अलकायदा की आमदनी का स्रोत भी चंदा ही बताया जाता है। ओसामा बिन लादेन और अब्दुल अज्जाम समेत कई नेताओं ने अलकायदा की स्थापना 1988 और 1989 के बीच हुई थी। संगठन को अफगानिस्तान-सोवियत युद्ध सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़ने के लिए बनाया गया था।
इस संगठन ने खोल रखे हैं स्कूल और अस्पताल
भारत
में लश्कर-ए-तैयबा जाना पहचाना नाम है। बीते दो दशकों में भारत में हुई कई
आतंकी वारदातों में शामिल होने का आरोप इस संगठन पर लगे। भारत सरकार के
अनुसार 2001 में संसद पर हमले और 26 नंवबर, 2008 के मुंबई हमलों में भी इसी
संगठन का हाथ था। आरोप है कि लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में
आतंकी प्रशिक्षण शिविर भी चलाता है।
लश्कर-ए-तैयबा का लक्ष्य दक्षिण पूर्व एशिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना करना और कश्मीर को आजाद कराना है। दी रिचेस्ट डॉट कॉम ने इस संगठन की सालाना कमाई करीब 100 मिलियन डॉलर (लगभग 61 अरब रुपए) के आसपास आंकी है।
वेबसाइट ने अमीर आतंकी संगठनों की सूची में उसे छठें स्थान पर रखा है। लश्करे तैयबा की आमदनी का अधिकांश हिस्सा चंदों से आता है। संगठन ने पाकिस्तान में अस्पताल और स्कूल भी खोल रखे हैं।
इस्लामिक राष्ट्र के लिए हुआ इनका गठन
अफगानिस्तान
को पूर्णतः इस्लाम की नीतियों पर चलने वाला राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से
1990 में तालिबान का गठन किया गया। तालिबान के मुखिया मोहम्मद उमर के
नेतृत्व में 1994 कंधार कांड से पहली बार चर्चा में आया था। बताया जा रहा
है कि तालिबान को तीन देशों पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई से संरक्षण मिला
हुआ है।
तालिबान की आर्थिक स्थित की बात करें तो इसे भी अन्य आतंकी संगठनों की भांति विदेशों से मदद मिलती है लेकिन तालिबान की असली कमाई नशीले पदार्थों की तस्करी से होती है।
अफगानिस्तान में अफीम की खेती बहुतायत में की जाती है और तालिबान एक बड़ी मात्रा में इसका कारोबार करता है। तालिबान की सालाना इनकम 40 करोड़ डॉलर यानी करीब 2400 करोड़ रुपए आंकी गई है।
तालिबान की आर्थिक स्थित की बात करें तो इसे भी अन्य आतंकी संगठनों की भांति विदेशों से मदद मिलती है लेकिन तालिबान की असली कमाई नशीले पदार्थों की तस्करी से होती है।
अफगानिस्तान में अफीम की खेती बहुतायत में की जाती है और तालिबान एक बड़ी मात्रा में इसका कारोबार करता है। तालिबान की सालाना इनकम 40 करोड़ डॉलर यानी करीब 2400 करोड़ रुपए आंकी गई है।
ISIS है सबसे धनी
फॉरेन
पॉलिसी डॉट कॉम के मुताबिक, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस)
विश्व का सबसे धनी आतंकी संगठन है। सीरिया और इराक के बड़े भूभाग पर कब्जे
के बाद जून महीने में आईएसआईएस ने उस इलाके को इस्लामिक राज्य बना दिया।
संगठन के सरगना अबू बकर अल बगदादी को 'खलीफा' और दुनिया में मुस्लिमों का
नेता घोषित किया गया।
बिजनेस इन्साइडर डॉट कॉम के मुताबिक, सुन्नी आतंकी संगठन आईएसआईएस फिरौती और तेल के अवैध कारोबार के जरिए 10 लाख डॉलर से तीस लाख डॉलर (तकरीबन 61 करोड़ से एक अरब 83 करोड़ रुपए) रोजाना कमाता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया के 60 फीसदी तेल-क्षेत्र पर आईएसआईएस का कब्जा है।
आईएसआईएस गैस, कृषि उत्पादों को बेचकर भी पैसे कमाता है। संगठन अपने कब्जे के इलाकों में बिजली और पानी पर कर लगा कर भी कमाई कर रहा है। आईएसआईएस की कमाई का एक जरिया फिरौती भी है। इसी वेबसाइट के मुताबिक, आईआईएस 12 मिलयन डॉलर (लगभग 7 अरब 33 करोड़ रुपए) महीने कमाता है।
बिजनेस इन्साइडर डॉट कॉम के मुताबिक, सुन्नी आतंकी संगठन आईएसआईएस फिरौती और तेल के अवैध कारोबार के जरिए 10 लाख डॉलर से तीस लाख डॉलर (तकरीबन 61 करोड़ से एक अरब 83 करोड़ रुपए) रोजाना कमाता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया के 60 फीसदी तेल-क्षेत्र पर आईएसआईएस का कब्जा है।
आईएसआईएस गैस, कृषि उत्पादों को बेचकर भी पैसे कमाता है। संगठन अपने कब्जे के इलाकों में बिजली और पानी पर कर लगा कर भी कमाई कर रहा है। आईएसआईएस की कमाई का एक जरिया फिरौती भी है। इसी वेबसाइट के मुताबिक, आईआईएस 12 मिलयन डॉलर (लगभग 7 अरब 33 करोड़ रुपए) महीने कमाता है।
5 साल में कमा लिए 4 अरब से ज्यादा
बोको
हराम नाइजीरिया का आतंकी संगठन है। ये आतंकी संगठन वैसे तो धमाकों आदि के
लिए लंबे समय से चर्चा में रहा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में
पिछली गर्मियों में तब आया, जब उसने 200 लड़कियों को अगवा कर लिया। ये
लड़कियां एक आवासीय स्कूल की छात्राएं थीं।
पश्चिमी शिक्षा का विरोधी ये संगठन नाइजीरिया में 2009 के बाद से अधिक सक्रिय है। आईएसआईएस की तरह ही बोको हराम भी नाइजीरिया में इस्लामिक मुल्क की स्थापना करना चाहता है। अल कायदा ने बोको हराम के आतंकियों को प्रशिक्षण दिया है। बोको हराम को अल कायदा फंड भी देता रहा है।
गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बोको हराम ने 2009 से 2014 के बीच 5 हजार से अधिक नागरिकों की हत्या की है। दी रिचेस्ट डॉट कॉम ने दौलतमंद आतंकी संगठनों की सूची में बोको हराम को सातवें पायदान पर रखा है। वेबसाइट के मुताबिक, 2006 से 2011 के बीच इस संगठन ने 70 मिलियन डॉलर (लगभग 4 अरब 27 करोड़ रुपए) कमाए थे। संगठन की कमाई का श्रोत अपहरण और फिरौती है।
पश्चिमी शिक्षा का विरोधी ये संगठन नाइजीरिया में 2009 के बाद से अधिक सक्रिय है। आईएसआईएस की तरह ही बोको हराम भी नाइजीरिया में इस्लामिक मुल्क की स्थापना करना चाहता है। अल कायदा ने बोको हराम के आतंकियों को प्रशिक्षण दिया है। बोको हराम को अल कायदा फंड भी देता रहा है।
गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बोको हराम ने 2009 से 2014 के बीच 5 हजार से अधिक नागरिकों की हत्या की है। दी रिचेस्ट डॉट कॉम ने दौलतमंद आतंकी संगठनों की सूची में बोको हराम को सातवें पायदान पर रखा है। वेबसाइट के मुताबिक, 2006 से 2011 के बीच इस संगठन ने 70 मिलियन डॉलर (लगभग 4 अरब 27 करोड़ रुपए) कमाए थे। संगठन की कमाई का श्रोत अपहरण और फिरौती है।
इसकी सालाना कमाई है 800 मिलियन डॉलर
वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी क्षेत्र में अपना प्रभाव कायम करने वाले आतंकी संगठन हमास भी दौलतमंद होने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
वैसे अपने आय के श्रोत के बारे में आतंकी संगठन किसी को जानकारी नहीं देते लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का मानना है कि हथियारों की तस्करी और विदेशी चंदा से हमास धन इकट्ठा करता है।
वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट डॉट ओआरजी के अनुसार हमास की सलाना कमाई 800 मिलियन डॉलर यानी करीब 53 अरब रुपए है।
वैसे अपने आय के श्रोत के बारे में आतंकी संगठन किसी को जानकारी नहीं देते लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों का मानना है कि हथियारों की तस्करी और विदेशी चंदा से हमास धन इकट्ठा करता है।
वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट डॉट ओआरजी के अनुसार हमास की सलाना कमाई 800 मिलियन डॉलर यानी करीब 53 अरब रुपए है।
इस संगठन का है नशीली दवाओं का कारोबार
रिवोल्यूशनरी
आर्म्ड फोर्सेज ऑफ कोलंबिया या एफएआरसी 1960 से ही कोलंबिया में सक्रिय
है। ये संगठन खुद को मार्क्सवादी विचारों पर आधारित गुरिल्ला संगठन मानता
है। अपने सैन्य दस्ते को इसने जनसेना का नाम दे रखा है। हालांकि कोलंबियाई
सरकार के लिए इसे अहम खतरा माना जाता है।
संगठन पर कोलंबिया में साम्राज्यवाद के विरोध के नाम पर कई नागरिकों की हत्या, अपहरण और बम धमाकों के आरोप हैं। संगठन की सालाना आमदनी तकरीबन 100 से 350 मिलियन डॉलर है। दी रिचेस्ट डॉट कॉम ने अमीर आतंकी संगठनों की सूची में इसे पांचवें पायदान पर रखा है।
संगठन की आमदनी का मुख्य स्रोत फिरौती और नशीली दवाओं का कारोबार है। कब सामने आया संगठन- 1964 में एफएआरसी की स्थापना कोलंबियन कम्यूनिस्ट पार्टी के सैन्य दस्ते के रूप में हुई थी।
संगठन पर कोलंबिया में साम्राज्यवाद के विरोध के नाम पर कई नागरिकों की हत्या, अपहरण और बम धमाकों के आरोप हैं। संगठन की सालाना आमदनी तकरीबन 100 से 350 मिलियन डॉलर है। दी रिचेस्ट डॉट कॉम ने अमीर आतंकी संगठनों की सूची में इसे पांचवें पायदान पर रखा है।
संगठन की आमदनी का मुख्य स्रोत फिरौती और नशीली दवाओं का कारोबार है। कब सामने आया संगठन- 1964 में एफएआरसी की स्थापना कोलंबियन कम्यूनिस्ट पार्टी के सैन्य दस्ते के रूप में हुई थी।
अल शबाब का भी नाम अमीर आतंकी संगठनों में शुमार
दुनिया के अमीर आतंकी संगठनों में सोमालिया के अल शबाब का भी नाम आता है।
अल-शबाब की सलाना इनकम 600 करोड़ रुपए बताई जा रही है। अल-शबाब के आय का मुख्य साधन, फिरौती, अपहरण, अवैध कारोबार, तस्करी, उगाही और विदेशों से मिलने वाली आर्थिक मदद है।
अल-शबाब के पास वर्तमान में 7000 से 9000 के पास लड़ाके हैं।
अल-शबाब की सलाना इनकम 600 करोड़ रुपए बताई जा रही है। अल-शबाब के आय का मुख्य साधन, फिरौती, अपहरण, अवैध कारोबार, तस्करी, उगाही और विदेशों से मिलने वाली आर्थिक मदद है।
अल-शबाब के पास वर्तमान में 7000 से 9000 के पास लड़ाके हैं।
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